डेंगू एक कुख्यात बिमारी का रूप धारण कर चुकी है, जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के किसी भी व्यक्ति को अपनी चपेट मे ले सकती है। यह किसी भी जाति, पंथ, समुदाय या आर्थिक स्थिति के व्यक्ति को नहीं बख्शती। यह बीमारी हर साल एक खास समय पर आती है लेकिन सरकार और उसके संबंधित विभाग, एनजीओ और मीडिया, डेंगू के फैलने के बाद इसके बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करते हैं। इससे निपटने के लिए आपदा प्रबंधन जैसी रणनीति की आवश्यकता है; हर व्यक्ति को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, क्या कार्रवाई की आवश्यकता है, विभागों के बीच अलर्ट संदेश कैसे फैलाना है और संदेश कैसे प्रसारित होगा यह सुनिश्चित कर दिया जाए। सरकार और विभाग ने किस स्तर की एक्शन लेनी है इस पर समय रहते चर्चा हो और क्या कार्रवाई करनी है यह तय किया जाए। लेकिन, विडंबना यह है कि सभी स्टेक होल्डर्स अलर्ट मोड़ में आने में देरी करते हैं; क्यों? क्योंकि डेंगू आता है और हर साल अपने आप चला जाता है, क्यों ज्यादा मेहनत करें इसकी रोकथाम में ! इसी एटीट्यूड में बदलाव लाना होगा। यह रोग एक विशिष्ट नर एडीज मच्छर द्वारा फैलता है। हर स्वास्थ्य देखभाल कर्मी और संबंधित व्यक्ति इस बीमारी के विज्ञान, रोग प्रसार की साइकिल एवं पूर्ण तरीका तथा हमें कहां हस्तक्षेप करना चाहिए अथवा किस प्रकार का उपचार दिया जाना चाहिए, इन सबसे अवगत हैं। हर वर्ष हैल्दी मौसम में ही डेंगू रोग के लिए जागरूकता कार्यक्रम शुरू हो जावे और सभी अपनी भूमिका निभाएंगे, तो इसका स्थायी समाधान हो सकेगा। अगर यह 3 से 5 साल तक दोहराया जाता है तो हमें निश्चित रूप से इसका परिणाम मिलेगा क्योंकि इससे लोग जागरूक और सतर्क हो जाएंगे और हर व्यक्ति इसके निवारण का उपाय करेगा। बस इतनी सी आवश्यकता रह जाएगी कि साल दर साल इसी ज्ञान को ताज़ा करना होगा, जिससे यह बोध, भविष्य में व्यवहार परिवर्तन और कालांतर में समय पूर्व कार्रवाई में तब्दील हो जाएगा। मेरा यह आग्रह है, सरकार से, एनजीओ और विशेष रूप से मीडिया से, कि बीमारी फैलाने वाले कारकों के बारे में जागरूकता बारिश शुरू होने से पहले और बरसात के मौसम के दौरान भी बदस्तूर जारी रहे। संबंधित विभाग सतर्क रहें और बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए एहतियाती उपाय नियमितता से जारी रखें। अगर कोई नियमों का उल्लंघन करता है तो इसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। अंत में, मैं कहूंगा कि डेंगू: का कहर, साल दर साल बना रहता है, इस तथ्य को जानने के बावजूद हम एक झटके (knee jerk response) के समान कार्रवाई करते हैं बजाय इसके कि एक योजना बद्ध कार्य प्रणाली अमल में लाएं। यह दुखद स्थिति है कि सरकार के प्रयासों को दिखाने वाली अखबारों की सुर्खियाँ तो नजर आती हैं पर जमीनी स्तर पर समस्या के निपटान में फोकस्ड कार्यवाही नहीं होती। इस तरह के नॉर्म्स बदलने की आवश्यकता है।