स्वैच्छिक रक्तदान शिविर - सुरक्षित रक्त
20 October 2021
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स्वैच्छिक रक्तदान के शिविर ज्यादा से ज्यादा लगे, जिससे सुरक्षित रक्त मरीज को तुरंत
मिल सके यही एकमात्र उद्देश्य स्वैच्छिक रक्तदान आंदोलन का रहा है। लेकिन इसके विपरीत
सभी समाजिक संस्थाएं, विभिन्न एसोसिएशन, क्लब, राजनैतिक, समाजिक, व्यापारिक
सेलिब्रेटी अथवा स्वयं का एक्सपोजर के लिए ब्लड डोनेशन कैंप लगाने की एक प्रतिस्पर्धा
आजकल रक्तदान शिविरों के ज़रिए बन गई है।
उत्तरप्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एस टी एफ) द्वारा खुलासा किया गया की कई ब्लड बेंक
रक्तदान शिविरों के माध्यम से रक्तदाता एवं मरीज दोनों के लिए खतरा बनते हैं। रक्तदाता
को तरह तरह के गिफ्ट एवं कैंप आयोजकों को प्रलोभन जैसे कैंप की व्यवस्था, रिफ्रेशमेंट,
वगेरह लग रहे, ब्लड बैंकों द्वारा स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित करने वाली संस्था को
ऑफर किया जाता है, जिससे संस्थाएं ज्यादा से ज्यादा रक्तदान करवा सकें।
स्वैच्छिक रक्तदान का मतलब होता है कि बिना प्रलोभन, भय के व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा
से रक्तदान करे। इस प्रकार के प्रलोभनों से व्यक्ति, संस्थाएं रक्तदान करने के लिए आकर्षित
करती हैं, जिसके कारण अधिकाधिक रक्तदान शिविर एक ही दिवस में लगाने की होड में
राष्ट्रीय रक्त परिषद एवं ड्रग एवं कॉस्मेटिक एक्ट द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप शिविरों
में व्यवस्था नहीं हो पाती है, जैसे – शिविर में डॉक्टर और नर्सिंग कर्मचारी की अनिवार्यता,
रक्तदाता की स्क्रीनिंग, या एकत्रित रक्त को सुरक्षित रखने एवं ब्लड बैंक तक ट्रांसपोरटेशन
की व्यवस्था नहीं होती है। जिसका सीधा असर रक्त की गुणवत्ता पर होता है एवं रक्त दाता
को भी खतरा हो सकता है। ऐसे ही वाकये हो चुके हैं, जिसमें रक्त दाता की रक्त दान करते
समय मृत्यु हो गई।
रक्तदान शिविर आयोजित करने वाली संस्थाओं को ध्यान रखना चाहिए कि वह ऐसे ब्लड बैंक
को ही शिविर में बुलाएं जोकि स्वयं रक्त मरीजों को दे सकें, ना कि दूसरे ब्लड बैंक में अथवा
राज्य से बाहर के ब्लड बैंक में रुपए लेकर दे दें। उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने यही
खुलासा किया है कि राजस्थान से भारी मात्रा में रक्त अन्य प्रदेशों में जा रहा है औऱ वह एक
यूनिट रक्त की दो यूनिट, सलाइन डालकर बनाते हैं। अथवा अन्य प्रकार की मिलाबट करते
हैं। जिससे कि मरीज को ब्लड चढाने के पश्चात भी लाभ नहीं मिल पाता है। उसकी जान
बचने के बजाय उलटा उसकी जान को खतरा हो जाता है।
रक्तदान शिविर आयोजित करने वाली संस्थाएं एक पुनीत कार्य कर रही होती हैं, लेकिन वह
अगर इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा में आ जाएंगी तो निश्चय ही रक्तदान आंदोलन को बहुत बडा
झटका लगेगा। जो रक्तदाता स्वैच्छिक रक्तदान करने आते हैं, उनको भी रक्त की खरीद
फरोख्त के समाचार से संदेह होगा औऱ स्वैच्छिक रक्तदाता रक्त दान करने में संकोच करेंगे
और अन्य तरह के रक्तदाता ही रक्त दान करने आएंगे। रक्तदान शिविर आयोजित करने
वाली संस्थाएं विशेष तौर पर ध्यान रखें की वो जानकारी प्राप्त कर लें की शिविर मे वो ही
ब्लड बैंक आयें जो ब्लड की नियमानुसार रखरखाव एवं जांच कर सकती हो, और जिसकी
स्वयं की सुरक्षित रखने व मरीजों तक आपूर्ति करने की क्षमता हो।
शर्मसार रक्त तस्करी
मांग और आपूर्ति का अर्थशास्त्र रक्त पर लागू नहीं होना चाहिए- क्योंकि रक्त एक ऐसी वस्तु है जो किसी
के भी जीवन को बचाने के लिए अति आवश्यक है। वास्तव में स्थिति होनी चाहिए, रक्त की किसी भी
जरूरतमंद के लिए हर समय पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने एक घोटाले का भंडाफोड़ किया जिसमें रक्त की
तस्करी का घोटाला खुला, जिसके तार पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से भी जुड़े मिले। रक्त को बेचने का
धंधा ही नहीं नकली (यानि सलाइन मिश्रित) रक्त की आपूर्ति जैसे अमानवीय कृत्य का भी खुलासा हुआ। यह
जानकर हैरानी होती है कि राज्य पुलिस, लाइसेंसिंग प्राधिकरण और ब्लड बैंक, जो इस संबंध में प्रामाणिकता
की जांच करते हैं, इस तरह की घटनाओं के बावजूद ऐसे घोटाले के बारे में सतर्क नहीं हैं। कम समय में
आसानी से पैसा कमाने के लिए रक्त के व्यवसाय में उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु राजस्थान और दूसरे राज्य
भी भले सीधे तौर पर नहीं लेकिन अपरोक्ष रूप से इससे जुडे पाए गए हैं। जयपुर शहर में भी अनएथेकली
रक्तदान शिविर आयोजित करते पाए जानी वाली संस्थाओं का इसमें इनबाल्वमेंट गंभीर मामला है।
ऐसा क्यों होता है?
आंकड़ों के अनुसार रक्त की कमी देश व्यापी है। सभी राज्यों में कुल मिलाकर 41 मिलियन यूनिट की भारी
कमी का सामना करना पड़ता है (यानि मांग, आपूर्ति से 400% अधिक है), 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों
को रक्त की आपूर्ति की कमी का सामना करना पड़ रहा है। आमतौर पर, महाराष्ट्र, पंजाब और केरल
रक्तदान में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं वहीं सिक्किम जैसे राज्यों ने शुरुवाती कमी से उबर कर उपलब्धता में
22% की वृद्धि की है। छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मेघालय जैसे खराब प्रदर्शन करने वाले
भी राज्य हैं, जिन्होंने नया केवल संघर्ष किया है बल्कि उनकी रक्त आवश्यकताओं में 50% से अधिक की
वृद्धि हुई है।
संकट क्यों
इन स्थितियों के पीछे कुछ मिथक हैं जैसे - लोग सोचते हैं कि रक्तदान करने से पुरुषों में मर्दानगी कम हो
जाती है; महिलाओं को लगता है कि वे रक्तदान नहीं कर सकतीं, इससे उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो
जाता है जबकि वास्तविकता यह है की मासिक धर्म और कम हीमोग्लोबिन के बावजूद भी महिलाएं अन्य
कामों की तरह रक्तदान भी कर सकती हैं।
आदर्श स्थिति
मित्रो, Zero wastage policy, आपूर्ति, गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे का
विकास होना एक आदर्श स्थिति होगी। नेशनल ब्लड ट्रांसफ्युजन कौंसिल को ब्लड मैनेजमेंट सिस्टम और
ब्लड ट्रांसफ्यूजन के विकल्पों के विस्तार के लिए और अधिक रसर्च तथा निवेश करने की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार किसी भी देश में प्रति 1,000 लोगों को पर्याप्त आपूर्ति निश्चित करने के लिए 10-
20 रक्त दाताओं के की उपलब्धता के लक्ष्य होना चाहिए। हमारे देश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार,
अनुमानित दैनिक मांग को पूरा करने के लिए प्रति 1,000 एलीजिबल डोनर्स में से 34 को वर्ष में एक बार
रक्तदान करना चाहिए।
ऐसे में मैं यही कहना चाहूंगा कि –
रक्तदान - महादान
साल मे 3 बार करें स्वैच्छिक रक्तदान,
रहें सतर्क रहें सावधान